ग़ज़ल-ईश्क इबादत का बयां होता है
जब भी होता है जहाँ होता है,
इश्क़ इबादत का बयां होता है।
इश्क़ में शर्त नहीं है वाजिब,
इश्क़ शर्तों पे कहाँ होता है।
इश्क़ रग-रग में बहे ख़ूँ जैसा,
रूह तक में भी रवाँ होता है।
है ज़रूरत ही कहाँ लफ़्ज़ों की,
इश्क़ आँखों से बयाँ होता है।
ज़र्रे ज़र्रे में नज़र आए वही,
हर घड़ी उसका गुमाँ होता है।
अल्पना सुहासिनी