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25 Apr 2022 · 1 min read

गर किसी मोड़ पर हम कभी फिर मिले

गर किसी मोड़ पर हम कभी फिर मिले
देख कर हम खुशी से गले फिर मिले

बैठ कर फिर बहुत देर तक यूँ रहे
जिस तरह से सफ़र में मुसाफ़िर मिले।

बात फिर ख़ूब हम इस तरह से करे
पास अपने खड़े ग़ैर-हाज़िर मिले।

तुम चलो हम चले दूर इतने कहीं
कि हमें हर जगह बस मुहाजिर मिले।

आ गई लो बिछड़ने की रुत फिर वही
जिस घड़ी हम कहे कब पता फिर मिले।

-जॉनी अहमद ‘क़ैस’

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