गर्मी के मेघ
उमड़ घुमड़ कर मेघ गरजते रहते हैं ।
जाने कौन कि वो हमसे क्या कहते हैं ।।
भूल गए क्या यह गर्मी का मौसम है ।
इसमें पानी नहीं , पसीने बहते हैं ।।
कुछ तो रहम करो, मई का महीना है ।
इसमें सूरज तपकर सबको दहते हैं ।।
घोर वृष्टि सावन भादों के महीने में ।
बड़े बड़े पर्वत नदियों में ढहते हैं ।।
हो आकाश विहारी तुम ये क्या जानो ।
लोग धरा पर क्या क्या संकट सहते हैं ।।