गर्जन में है क्या धरा ,गर्जन करना व्यर्थ (कुंडलिया)
गर्जन में है क्या धरा ,गर्जन करना व्यर्थ (कुंडलिया)
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गर्जन में है क्या धरा ,गर्जन करना व्यर्थ
बरसेंगे जो मेघ तो , उनका है कुछ अर्थ
उनका है कुछ अर्थ ,धरा उनसे सुख पाती
पाकर जल की बूँद ,तृप्ति भीतर से आती
कहते रवि कविराय ,हाथ में रखिए अर्जन
तभी बनेगी बात , व्यर्थ का होता गर्जन
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गर्जन = बादलों की गड़गड़ाहट
अर्जन = कमाई
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 5451