गम
“गम”
गम अगर रेत होता
फूकं से उडा देता,
नदी में बहा देता,
दीबार में चिनवा देता ।
गम अगर हवा होता
आंधी से उडा देता,
धुंऐ में मिला देता,
आग में जला देता।
गम तो गम है
न उडता है
न पिघलता है
न वहता है
न जलता है।
गम तो गम है
गम जलाता है,
गम रुलाता है,
आंसुऔं से नैहलाता है
आदमी के साथ
रूह को भी खाता है।
गम तो गम है
डरने वाले को और भी डराता है
गम तो वस होसले से जाता है।।।