गढ़वाली दोहे-2 | मोहित नेगी मुंतज़िर
डांडा धारूँ मां खिलयां, फ्यूंली बुराँसा फूल
पड़ना डालूं डालूं मा, यख बासंती झूल।
चेते की संग्रन्द ऐ , अर फूलदेई त्योहार
शैरी धरती फैली गी, मौलयरो रैबार।
अपणा विराणा क्वी भी हो, सब मतलब का यार
बिपदा जब भी आंदी त, सबका बाटा चार।
बचे ले पुरखों मान तू, स्वाभिमान जगो
अपणी ने पीढ़ी ते तू , अपणी बोली सीखो।
गोरु पुन्गडी बेची की, चलेगिन सब बाज़ार
गौं की माटी देखी की ,व्हैगी आज लाचार।