गज़ल
गज़ल
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नफरतो के शिकार हो रहे रिश्ते
पलको को अब भिगों रहे रिश्ते।
खुदगर्जी में डुबे यहाँ तो सभी
किस्मत पे अपनी रो रहे रिश्ते।
मुद्यत के बाद दर पे कोई आया
खुशी के गौहर पिरो रहे रिश्ते।
फिर कोई खुशी की बात होगी
ख्वाब कोई नया संजो रहे रिश्ते।
परवरिश की उम्मीद बाकी बची
नये बीज कुछ आज बो रहे रिश्ते।
कोई राह दिखाने वाला नही
अहमियत अपनी खो रहे रिश्ते।।
—मनीषा सहाय