गगरी (कुंडलिया)
गगरी (कुंडलिया)
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गगरी कब किसकी भरी, गगरी रही उदास
गगरी भरने की रही , लेकिन सबको आस
लेकिन सबको आस , अधूरी हैं इच्छाएँ
मनचाहे आकाश , दूर कुछ रह- रह जाएँ
कहते रवि कविराय,निकट कब प्रिय की नगरी
जब भी देखूँ झाँक , अधभरी पाई गगरी
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 9 99761 5451