गंगा
शुचित पावन नदी गंगा l
नहाकर मनु रहे चंगा ll
सभी के पाप धोती है l
हृदय में आस बोती है ll
भगीरथ की तपस्या से l
धरा उबरी समस्या से ll
नदी ऋषि स्वर्ग से लाए l
पितर को मोक्ष दिलवाए ll
जटा पर गंग को धारे l
उमापति शिव लगे प्यारे ll
नियंत्रित गंग को करते l
नदी की वेदना हरते ll
नदी स्नान मनु करके l
कमंडल नीर से भरके l
करें जो आचमन इसका l
सफल हर ध्येय हो सका ll
साई लक्ष्मी गुम्मा ‘शालू ‘
आंध्र प्रदेश
स्वरचित_ मौलिक