गंगा- सेवा के दस दिन (सातवां दिन)
गंगा- सेवा के दस दिन
सातवां दिन- शनिवार 22 जून 2024
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31.सगर सुतों की मुक्ति को,
लिया भूमि अवतार।
वर्षों से दूषित पड़े,
किया सहज उद्धार।।
किया सहज उद्धार,
चरण से निकली धारा।
रज-कण पावन किए
और जन-जन को तारा।।
गंगा हैं हरि-चरण प्राप्ति की,
पहली चौकी।
अमर हुई गाथा गंगा से,
सगर सुतों की।।
32.पावन गंगा धार में
यदि किंचित विश्वास।
‘पानी’ कह कर ना करें,
गंगा का उपहास।।
गंगा का उपहास,
इसे बस नदी न मानो।
यह ‘अमृत-घट’ मिला,
शक्ति इसकी पहचानो।।
गंगा-दर्शन मात्र,
सफल कर देता जीवन।
एक बिंदु भी,
कोटि-कोटि को कर दें पावन।।
33. अगर न बदले मनुज ने,
अपने क्रियाकलाप।
कर देगा उसको खतम,
मां गंगा का शाप।।
मां गंगा का शाप,
कष्ट लाता जीवन में।
जिसने कचरा भर डाला है,
मां के तन में।।।
भर डाला जो ज़हर,
कहीं हम पर ना उगले।
मानव होगा नष्ट,
अगर रंग-ढंग न बदले।।
34.जीवनदाता जल यहां,
जीवन का पर्याय।
जल से जीवन पा रहा,
है मानव समुदाय।
है मानव समुदाय,
गंग-जल का आभारी।
गंगा से पोषित है,
मानव जाति हमारी।।
गंगा से मानव का,
जन्म जन्म का नाता।
जीव-जंतु कृषि वन-उपवन को
जीवन दाता।।
35. दूषित मल-जल बह रहा,
रोती गंगा धार।
उद्योगों का हो गया
घाट-घाट विस्तार।।
घाट-घाट विस्तार,
स्वच्छ जल जहर बनाया।
पृथ्वी के अमृत का,
लाभ नहीं ले पाया।।
अभी स्वयं से मनुज,
कर रहा कितने छल-बल।
अमृत रस में घोल दिया है
दूषित मल-जल।।
…..(क्रमश:)