गंगा- सेवा के दस दिन (नौंवां दिन)
गंगा- सेवा के दस दिन
नौंवां दिन- सोमवार 24जून 2024
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41.हरियाली सब कट रही,मरुथल बने कगार।
गंगा तट पर बढ़ रहे,बस्ती और बाजार।।
बस्ती और बाजार धार अब हटती जाती।
गंगा तट पर नई बस्तियां कटती जाती।।
जिसे समझते आज जिंदगी की खुशहाली।
निगल रहा है वह विकास, सारी हरियाली।।
42.कीड़े पड़ते थे नहीं, और न थी दुर्गंध।
ऐसा जल, दूषित किया मनुज हो गया अंध।।
मनुज हो गया अंध,न देखे आगा पीछा।
उसमें घोला जहर, कि जिसने जीवन सींचा।।
गंगा शुद्धीकरण हेतु अब ले लें बीड़े।
वरना इक दिन मानव बन जाएंगे कीड़े।।
43. डुबकी मुश्किल हो गई जल में है दुर्गंध।
पर कागज पर हो रहे, बड़े-बड़े अनुबंध।।
बड़े-बड़े अनुबंध,रोज बैठक सम्मेलन।
एयर कंडीशन में बैठ, कर रहे चिंतन।।
दूषित गंगा से मुश्किल बढ़ जाएं सबकी।
जल हो अगर प्रदूषित कैसे लोगे डुबकी??
44.गंगाधर शिव शंभु के मस्तक पर आसीन।
पावन गंगा नीर की छवि है सदा नवीन।।
छवि है सदा नवीन,भव्यता इसकी अनुपम।
तीर्थ बन गए यमुना एवं सागर संगम।।
गंगा शुद्धीकरण बन गया कितना दुष्कर।
स्वच्छ बनेगी,कृपा करें यदि शिव गंगाधर।।
45.वेद ऋचाऐं गूंजतीं तट पर साधन ध्यान।
गंगा तट पर बैठते पंडित कवि विद्वान।।
पंडित कवि विद्वान रची तुलसी ने मानस।
योग शक्ति अध्यात्म भक्ति और जीवन का रस।।
गंगा के हित सभी श्रेष्ठ विधियां अपनाएं।
गंगा तट पर फिर से गूंजें वेद ऋचाएं।।
(……अशेष)💐💐