गंगा- सेवा के दस दिन (छठा दिन)
गंगा- सेवा के दस दिन
छठा दिन- शुक्रवार 21जून 2024
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26. संगम में आकर मिले जब यमुना की धार। दिव्य त्रिवेणी से सजे वसुधा का श्रृंगार।।
वसुधा का श्रृंगार तीर्थ यह सबसे न्यारा।
हिंदू जनमानस को यह प्राणों से प्यारा।।
घाट-घाट पर होती शिव भोले हर बम-बम।
दर्शन से ही मुक्ति दिलाता पावन संगम।।
27.शंकर की प्रिय गंग है हिय में भरे उमंग। मोक्षदायिनी त्रिपथगा पावन तरल तरंग।।
पावन तरल तरंग,मुक्ति यह देने वाली।
मैदानों को बांट रही, स्वर्णिम हरियाली।।
श्रीहरि का स्पर्श मिले, लहरों को छूकर।
सिर पर रखकर शीतलता पाते शिव शंकर।।
28.गंगाजल के पात्र को, रखिए सालों साल।
सदा ताजगी ही मिले, कभी न हो बदहाल।।
कभी न हो बदहाल, न बदबू और न कीड़ा।
किंतु आज हमने ही दी गंगा को पीड़ा।।
गंगा दूषित तो, बिगड़े आने वाला कल।
पीढ़ी दर पीढ़ी जीवनदाता गंगाजल।।
29.होती गंगा क्रुद्ध तो गिरते पेड़ पहाड़।
गांव खेत खलिहान को पल में करें उजाड़।।
पल में करें उजाड़ उफनती नदिया नाले।
यह बिगड़े तो,लाखों का जीवन ले डाले।।
जब प्रसन्न हों, पाप-ताप कलि-कल्मष धोती।
हैं प्रलयंकर रूप क्रुद्ध जब गंगा होती।।
30.घाट-घाट पर गूंजती गंगा की जय कार।
शंकर की काशी तथा हरि का प्रिय हरि-द्वार।
हरि का प्रिय हरि-द्वार,परम पावन गंगा जल।
एक आचमन,तन-मन को कर देता निर्मल।। भाग्यवान हैं, जो बनते गंगा में जलचर।
हरि-दर्शन का भाव,यहां हर घाट-घाट पर।।
(….अशेष)💐💐