गंगा- सेवा के दस दिन (आठवां दिन)
गंगा- सेवा के दस दिन
आठवां दिन- रविवार 23 जून 2024
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36.हरि चरणों से यह गिरीं,
ब्रह्म कमंडल मध्य।
ब्रह्म कमंडल से हुईं,
हिमगिरि से संबद्ध।
हिमगिरी से संबद्ध,
उतर भू-तल पर आई।
पाप मुक्त जन किए,
सज्जनों को सुखदाई।।
लहरें चमक रहीं,
सज्जित हो रवि किरणों से।
मृत्यु बाद,मिलवा देतीं,
यह हरि चरणों से।।
37.तर्पण पितरों का करें,
रख मन में विश्वास।
गंगाजल से ही मिले,
हरि चरणों में वास।।
हरि चरणों में वास,
दिलाती गंगा माता।
मुक्ति मिले, प्रभु भक्ति,
भाव युत मन हो जाता।।
अपना तन-मन जीवन,
मां गंगा के अर्पण।
पितृ तृप्त होते,
पा कर गंगा का तर्पण।।
38.गोमुख से निकली यहां,
पावन गंगाधार,
गंगा ने हमको दिया,
युगों-युगों से प्यार।
युगों-युगों से प्यार,
अन्न-जल देती हमको।
तन को शोधित करें,
और सुख देतीं मन को।।
काया को मिल जाते,
जीवन के सारे सुख।
ब्रह्म कमंडल का जल,
हमको देता गोमुख।।
39.आश्रम उपवन वाटिका,
साधु संग उद्यान।
नाले गिरते धार में,
घाट बने श्मशान।।
घाट बने शमशान,
धार में कचरा बहता।
मां गंगा का तन
ना जाने क्या-क्या सहता।।
गंगा देतीं,
मरते मानव को नव जीवन।
गंगा-तट से स्वर्ग बनें,
मंदिर गृह आश्रम।।
40.शिव शंकर की जटा में,
भरा अमृत का कोष।
मुक्ति मार्ग सोपान है,
नित्य सिद्ध निर्दोष।।
नित्य सिद्ध निर्दोष,
धार गंगा की बहती।
भारत की जनता से,
मानो फिर-फिर कहती।।
मैंने तुमको अपनाया है,
आगे बढ़कर।
मुझे प्रदूषित किया?
क्रुद्ध होंगे शिव शंकर।।
(….अशेष)💐💐