गंगा माँ की दोहा कविता
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पवित्र मृदु निर्मल हो यही,जब करे अनुष्ठान ।
रोग मुक्त कर दे हमे , ये औषधि जल पान //1//
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निगम में भी लिखा गया , गंगा का गुणगान ।
पाप मिटत जाये सदा , जब करे यहाँ स्नान //2//
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गंगा जल अनमोल है,होता अमृत की खान ।
देती अंतिम मोक्ष वो , पिए तभी इंसान //3//
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माँ देवी भागीरथी , कहत पूरा जहाँन ।
है सभी धर्मों के लिए , ये अम्बु इक समान //4//
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प्रवाह धारा तेज थी , रोके शिव भगवान ।
समेट लिया जटा महे , बढ़ाया गंग मान //5//
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नमामि गंग कहे चलो , लगाओ जरा ध्यान ।
पावन है नीर सदा , देती जीवन दान //6//
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पूज्य भारत की नदी , देते सम सम्मान ।
दूषित ना करना इसे , छोटी सी अरमान //7//
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गंगा है स्वर्ग की नदी , कल कल बहती धार ।
शिवजटा विष्णुपाद से निकल किया उद्धार //8//
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© प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)
13/अगस्त/2021 FRi.