ख्वाहिशों का अम्बार
आसुदा मिला कहाँ चाहतों से
किसी को अब तक।
बसर जितने में हो
उतनी ही दरकार है।
सोचता हूँ सब्र का दामन
पकड़ के रखूं क्योकि,
क़ल्ब में तमाम ख्वाहिशों का अम्बार है।
सतीश सृजन.
आसुदा मिला कहाँ चाहतों से
किसी को अब तक।
बसर जितने में हो
उतनी ही दरकार है।
सोचता हूँ सब्र का दामन
पकड़ के रखूं क्योकि,
क़ल्ब में तमाम ख्वाहिशों का अम्बार है।
सतीश सृजन.