ख्वाहिशें बेल बनकर
रात को
सपने जागते हैं
अरमान सोते हैं
कभी कभी
सपने सोते हैं
अरमान जाग जाते हैं
ख्वाहिशें बेल बनकर
एक उम्मीदों की शाखाओं से
भरे
पेड़ के सीधे
आसमान छूते तने पर
ऐसे चढ़ती हैं जैसे कि
कसम खा ली हो कि
कभी नीचे उतरेंगी ही नहीं और
जमीन की तरफ अपनी
नजरें झुकाकर देखेंगी ही नहीं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001