ख्वाब और हकीकत
अक्सर ख्वाब हमारे धोखा देते हैं,
बंद आंखों में जितने भी संजोते हैं।
खुली आंखो देखे ख़्वाब करें पूरे,
कड़वी हकीकत से दो चार होते हैं।
कब कहता हैं भला ये कौन कभी,
हो जाते हों सबके ख्वाब पूरे सभी।
हकीकत की मार तो सहनी पड़ती है,
ख्वाबों से मन को तसल्ली मिलती है।
देते हैं जीवन को यही आयाम नया,
हर किसी ने जीवन दो पहलू मे जिया।
एक ओर ख्वाबों की खुमारी होती हैं,
जमी हकीकत की तो इम्तहान लेती है।
कुछ पल ख्वाबों की दुनिया बेहतर हैं,
खुलती आंखों में हकीकत का असर हैं।
भागम भाग ज़िंदगी के दस्तूर रुलाते है,
ख्वाब बनते भविष्य का जोश दिलाते हैं।
दोनो की जमी पर ही कल की तैयारी है,
ख्वाब और हकीकत दोनों होते भारी हैं।
जीते हैं हकीकत को नए ख्वाब बुनकर,
हकीकत मे कुछ पल ख्वाबों से चुनकर ।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश