“ खो गया अपनापन “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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कभी मैं सोचता हूँ ,
कि उनसे बात करूँ !
कभी मैं सोचता हूँ ,
कि कुछ उनको लिखूँ !!
पर ठिठक जाता हूँ ,
कहीं बुरा ना लगे !
लिखने से डरता हूँ ,
जबाव भी ना मिले !!
जब साधन नहीं थे ,
हमसब तरसते थे !
लोगों के टेलीफोन ,
का इंतजार करते थे !!
अब नेट का जमाना ,
आके फैल गया है !
सबके हाथों में यह ,
यंत्र मिल गया है !!
फिर भी हम लोग ,
बात करते नहीं हैं !
उनके दुख दर्द को ,
कभी समझते नहीं हैं !!
दोस्त भी मैंने काफी ,
फेसबुक में बना रखा है !
पर उनसे भी बातें कहाँ ,
फोटो ही सजा रखा है !!
सब अपनी धुन में हैं ,
किसी की परवाह नहीं !
मैं उन्हें कुछ भी लिखूँ ,
उन्हें लिखने की चाह नहीं !!
यह रोग चारों तरफ ,
करोना बन गया है !
अपने पड़ोस में भी ,
ओमीक्रॉन फैल गया है !!
निमंत्रण आमंत्रण को ,
व्हाट्सप्प कर देते हैं !
सहयोग आत्मीयता को ,
हमलोग खो देते हैं !!
प्यार अपनापन हमें ,
आजन्म तक मिलता नहीं !
उजड़े हुए वीरान में ,
फूल आत्मीयता का खिलता नहीं !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत
04. 02. 2022.