खोलो मन के द्वार (कुंडलिया)
खोलो मन के द्वार (कुंडलिया)
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मिलना सबसे चाहिए , दोनों बाँह पसार
गले लगाओ नेह से, खोलो मन के द्वार
खोलो मन के द्वार,कुटिलता कभी न लाओ
रखो बैर मत भाव ,सभी में निज को पाओ
कहते रवि कविराय, फूल के जैसे खिलना
सबको बाँटो प्यार,जब जहाँ जिस से मिलना
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451