खोलो मन की सारी गांठे
खोलो मन की सारी गांठे
सब मिथ्या अभिमान तजो ।
जब अपने ही न समझे
औरों पर क्या ध्यान धरो ।
नहीं बदल सकते तुम सबको
इसीलिए खुद को बदलो ।
रोना क्या रास्ता पथरीला
पांव में खुद जूते पहनो ।
सब अपने पथ के पंथी हैं
तुम भी अपनी राह चुनो ।
मन में भर विश्वास अटल
संस्कारित पथ विन्यास चुनों ।
जन मन रंजन प्रतिवाद सब
प्रतिवादों पर न ध्यान धरो ।
निश्चय पथ दुर्गम भी होंगें
धर धीर बुद्धि से पार करो ।