खोया सिक्का
खोया सिक्का
खोया सिक्का ढूढ़ रहा हूँ।
पागलपन में दौड़ रहा हूँ।।
यह मिलता है नहीं कहीं भी।
अति व्याकुल मन बहुत अभी भी।।
मन ही मन मैं सोच रहा हूँ।
खुद से खुद ही पूछ रहा हूँ।।
मेरा सिक्का कहाँ खो गया?
कहीं किसी का नहीं हो गया??
बेचैनी में जी घबड़ाता।
इधर उधर मुझको भटकाता।।
परेशान जबतक मिल जाता।
अति तनाव सिक्का पहुँचाता।।
भूल गया था दिये दान को।
स्मृति से ओझल दे भिक्षुक को।।
मन निश्चिंत हुआ तब जाकर।
सिक्के के हिसाब को पा कर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।