खोकर के अपनो का विश्वास…। (भाग -1)
आज मै गलती कर बैठी हूंँ,
खोकर के अपनो का विश्वास,
तन मन प्राणों से ज्यादा,
पालन किया फूलो-सा,
एक प्रेम के खातिर भूल गई,
मान मर्यादा और एहसास,
लाँघ गई देहलीज को,
सोचा ना एक भी बार,
छूट गया अब घर बार,
नाते-रिश्ते अपनो का प्यार,
माँ की ममता पिता का साया,
टूट गया गया धागे का प्यार,
प्रेम में ऐसे छल गई मैं,
रूठ गया सारा संसार। ………(1)
आज मैं गलती कर बैठी हूँ,
खोकर के अपनो का विश्वास,
रोते रह गए माँ और बाप,
अंधी हुई मुझे दिखा न राह,
यौवन के आवेश में लिपटी,
लालच ने पर्दा है डाला,
मोह रूप का ऐसे छल गया,
विरह की आग में सब कुछ जल गया,
भूल गई थी बचपन का प्यार,
पग जो रखा आवरण के आगे,
त्याग कर अपना संस्कार,
छलिया के छल में अब फस कर,
नैनो से रुकते न धार,
बिखर गया मेरा संसार ।………(2)
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर ।