खूंटी पर टंगी कमीज़ को ….
खूंटी पर टंगी कमीज़ को ….
जब जब
मैं छूती हूँ
खूंटी पर
टंगी कमीज़ को
मेरा समूचा अस्तित्व
रेंगने लगता है
उस स्पर्शबंध के आवरण में
जहां मेरा शैशव
निश्चिंत सोया करता था
अब
जब आप नहीं रहे
मैं इस कमीज़ में
आपको महसूस करती हूँ
सामना करती हूँ
हर उस दूषित दृष्टि का
जो मेरे शरीर पर
अपनी कुत्सित भावनाओं की
खरोंचें डालती है
मेरी दृष्टिहीनता को
मेरी कमजोरी मानती है
न, न
आप क्यूँ डरते हैं
आप ने ही तो मुझे
मन की आँखों से देखना
सिखाया है
आप नहीं हैं
पर है
इस खूंटी पर
टंगी कमीज में
आपके होने का विश्वास
पापा
सुशील सरना