खुशी
खुशियाँ हैं आसपास ही कहीं,
ढूँढिए तो जरूर मिलेंगी।
कीजिए किसी नन्हे बालक से जरा बात,
उस की तोतली जुबान में मिलेंगी ।
कराइए किसी बुजुर्ग को सड़क पार,
उनके आशीषों की बौछार में मिलेंगी।
मंदिरों में देने वाला दान,
किसी गरीब की रोटी में आए काम,
उनकी दुआओं में मिलेंगी।
कभी माता-पिता के भी बैठें पास,
उनसे बातें कर लें चार,
तो उनकी खुशी के इजहार में मिलेंगी।
बहुत हुई यारों के संग मौजमस्ती,
कभी मंदिर में जाकर बैठिये ,
उस मालिक के दीदार में मिलेंगी।
प्रकृति है हमारी सच्ची हमदम,
मिलिए हरे-भरे पेड़ पौधों से,
फूलों की महक खुशगवार में मिलेंगी।
नदिया के तीरे का दृश्य ही अप्रतिम,
पानी की लहरों के सुर-ताल में मिलेंगी।
रिमझिम-रिमझिम बरसे बारिश की बूंदें,
बरखा की ठंडी फुहार में मिलेंगी।
छोड़िये उदासी, मायूसी को त्यागिये,
ढूँढेंगे तो ईश्वर की बनाई हर कृति,
हर आकार में मिलेंगी।
कहते हैं इस हाथ दीजिए, उस हाथ लीजिए,
खुशियां बांटेंगे तो खुशियाँ ही मिलेंगी।
फिर देखिए
खुशियों हर पल खड़ी आप को,
आपके घर-द्वार में मिलेंगी।
– – – – रंजना माथुर दिनांक 04/07/2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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