*खुशी का कोई भी मोल नहीं है*
खुशी का कोई भी मोल नहीं है
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खुशी का कोई भी मोल नहीं है,
जुबां मीठी का कोई तोल नहीं है।
लाख चौरासी जूनी को देखकर,
इंसां सा जीवन अनमोल नहीं है।
भरा होता औपचारिकता से दूजा,
खुद से बढ़ कर कोई रोल नहीं है।
अपनों से बढ़कर पोल खोल नहीं,
उन जैसा देखा कोई गोल नहीं है।
पचा न पाते कोइ बात मनसीरत,
चुगलखोर जैसा भी ढोल नहीं है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)