खुदगर्जो का नब्ज, टटोलना है बाकी ..
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बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब मुसद्दस मुज़ाफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े
22222222222
खुदगर्जो का नब्ज, टटोलना है बाकी
भरी सभा में मेरा, बोलना है बाकी
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मुझसे मेरी तन्हाई की, क्या होती हैं बातें
फर्क सामने से बस, तौलना है बाकी
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घर से चला था, नजदीक समझ के शिवाले
तुम सामने आ दिखी, क्या सोचना है बाकी
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यूँ लगता बरसों से, जानता हूँ तुझको
पर लगता खूब तुझको, समझना है बाकी
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कुछ जगह से टूट गया , रिश्तो का धागा
नाजुक कडियाँ ही अब, जोड़ना है बाकी
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कल संभावना की बाढ़ से, भरपूर थी नदी
आज सूखे में योजना , डुबोना है बाकी
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हाशिये भर कागज़ में ,खुल के सब लिखना
बिन कहे कह जाती , आलोचना है बाकी
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com
7000226712
5.4.24.