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22 Oct 2020 · 1 min read

खींच लायी जुस्तजू ये गाम तेरे शहर में

ग़ज़ल
खींच लायी जुस्तजू ये गाम तेरे शहर में।
थी बितानी एक मुझको शाम तेरे शहर में।।

कोई पागल कोई दीवाना समझता है मुझे।
दे दिये मुझको ये कैसे नाम तेरे शहर ने।।

नाम था पहचान थी और था अपना वजूद।
हो गया हूँ भीड़ में गुमनाम तेरे शहर में।।

एक गुल की चाह में कितने बदन में चुभ गये।
काँटे ही काँटे बिछे गुलफाम तेरे शहर में।।

बेज़बां था इसलिए सब क़ातिलो ने क़त्ल का।
रख दिया सर पर मेरे इल्ज़ाम तेरे शहर में।।

भागती है जिन्दगी ये दौड़ते इंसां “अनीस”।
हर तरफ ही तो मचा कुहराम तेरे शहर में।।
– अनीस शाह “अनीस”

1 Like · 4 Comments · 255 Views
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