खाली बैठे फेंटते…
कुंडलिया छंद…
खाली बैठे फेंटते, जो हैं पत्ते ताश।
पहुँचेंगे कैसे कहो, उनके पग आकाश।।
उनके पग आकाश, स्वप्न आँखों से रूठे।
मात- पिता विश्वास, रहे कर यूँ ही झूठे।।
पत्नी का अपमान, बहाते भोजन थाली।
‘राही’ होता नष्ट, बुद्धि उनकी जो खाली।।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)