खानाबदोश
आसमान में उड़ते
परिंदों की तरह
इस जगह से उस जगह
आशाओं की उड़ान भरते हुए
अनगिनत ख्वाबों को
अपने आँखों में सजाए हुए
चलते रहते हैं हरदम,
न कोई दिशा न मंजिल
बस यूं ही गुजरते रहते हैं
अनजान शहर की गलियों से
अनजाने सफर पर
कहलाने ‘खानाबदोश’ खुद को,
न कभी थकते पाँव उनके
न ही रोकते कभी
वो अपनी यात्रा को ।