“ख़्वाहिशें उतनी सी कीजे जो मुक़म्मल हो सकें। “ख़्वाहिशें उतनी सी कीजे जो मुक़म्मल हो सकें। आसमां की चाह रख कर भी ज़मीनें मांगिए।।” ☺प्रणय प्रभात☺