ख़ुद को मिटाया तब कहीं जाकर ख़ुदा मिला ।
ख़ुद को मिटाया तब कहीं जाकर ख़ुदा मिला ।
सोचा था वैसा था नहीं बिल्कुल जुदा मिला ।।
सोचा था बैठा होगा मस्जिदों में शान से ।
मुझको तो हर गरीब के घर पर खुदा मिला।।
सब मंदिरों में घूमकर तलाशते रहे ।
मुझको हरेक इंसान के अंदर खुदा मिला ।।
वैसे तो कौन है किसी का इस जहांन में
मुझको तो हर यतीम का रहबर खुदा मिला ।।
शक मत करो खुदा की खुदाई पर तुम कभी।
मुझको तो रहमतों का समन्दर खुदा मिला ।।
जिस् पर खड़ा किया है बुलंदियों का ये महल ।
मुझको तो उसकी नीव का पत्थर खुदा मिला ।।
शोहरत के नशे में जिसे हम भूल गये थे ।
“कश्यप” तुम्हारे पास ही अकसर खुदा मिला ।।