खत्म होती मानवीय संवेदनाएं
आज समाज में व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना का जिस तीव्रता से विकास हो रहा है वह बहुत शर्मनाक और चिन्ता का विषय है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भौतिकवाद के बढ़ते प्रभाव ने मनुष्य को स्वयं तक सीमित कर दिया है। आज वह केवल अपने लिए जीता है और अपने लिए सोचता है और यही कारण है कि आज समाज में घटने वाली रोडरेज की घटनाएं हो या रोड पर घटने वाली दुर्घटनाएं हो । या वे दुर्घटनाएं जिसमें तमाशबीनो की भीड़ होने के उपरान्त भी असंख्य व्यक्ति सही समय पर सहायता न मिल पाने के कारण बेमौत मर जाते हैं। ऐसी दुखद घटनाओं के पीछे लोगों में मानवीय संवेदना का पूर्ण अभाव देखने को मिलता है, वह मानव जिसकी पहचान ही उसके मानवीय गुणों जैसे कि सहानुभूति, संवेदना, दुःख आदि होती है और यही गुण मनुष्य में न रहेंगे तो मानव और पशु में अंतर करना ही असंभव हो जायेगा। हमारे समाज में आये दिन जिस प्रकार की मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं घटित हो रही है वह वास्तव में हमारे संवेदनहीन हो रहे समाज की छवि को प्रदर्शित करती है। अभी पिछले कुछ माहों में ऐसी असंख्य दुखद घटनाएं घटित हुई जिसमें मानवता भी शर्मसार हुई।
यह हमारे समाज के लोगों की कैसी मानसिकता है कि वह मनुष्य होकर भी असभ्यों जैसी क्रियाएं करने लगा है ? अभी कुछ दिनों पूर्व मैंने सोशल मीडिया पर वीडियो देखा जिसमें एक लड़की को पहले पब्लिक द्वारा बड़ी ही निर्दयता से मारा मीटा गया और फिर पेट्रोल छिड़ककर उसे जिन्दा जला दिया गया और कोई भी उस असहाय लड़की की सहायता के लिए आगे नहीं आया। यह समाज में घटने वाली मात्र एक घटना नहीं है। डायन बनाकर कभी बदला लेने के लिए बर्बरता पूर्ण ढंग से मार दी जाने वाली नारियां एक दो नहीं हजारों में होती है, इससे पूर्व भी एक प्रेमी जोड़े को पूरे गांव के समक्ष जिन्दा जला दिया गया और तो और दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को भी लोग मरता हुआ छोड़कर आगे निकल जाते हैं लेकिन घायल व्यक्ति की सहायता के लिए आगे कोई नहीं आता। आश्चर्य तो तब होता है जब हमारा सभ्य समाज मूक दर्शक बना घटना की वीडियो बनाता रहता है और सोशल मीडिया पर अपलोड करता रहता है। यह वास्तविकता हमारे मानव होने पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। ऐसी दुःखद घटनाओं के पीछे चाहे कैसी भी परिस्थितियां या कुछ भी कारण रहे हो लेकिन इतनी निर्दयता और इतनी नृशंसता से किसी के प्राण ले लेना, कौन सी बहादुरी है? ऐसी उन्नति ऐसी उपलब्धियां, ऐसा विकास आखिर किस काम का, जो नैतिकता को ही समाप्त कर दे। समाज की उन्नति, उसका विकास तभी संभव है जब इंसान दूसरे इंसान से प्यार करना सीखेगा, अपने लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी जीना सीखेगा, सामाजिक सद्भाव को बनाये रखने के लिए बहुत आवश्यक है कि मनुष्य अपने अन्दर मानवीय संवेदनाओं के भाव को जागृत करें।