खजूर के वृक्ष का दुख
बड़ा हुआ तो क्या हुआ ….
कबीर के दोहे से
खजूर बहुत खिन्न है
वह कहते सुना गया
मेरा यहाँ होना
अन्य वृक्षों से भिन्न है ॥
छाया और फलदार वृक्षों पर
किसने और क्यों
कुल्हाड़ी -आरी चलायी
मैँ जनता हूँ
पगडंडी जो नदी तक गईं
उसकी छाती पर ट्रक ट्रॉली
जिसने भी चलाई चलवाईं
पहचानता हूँ ॥
मेरी लंबाई के कारण
पहाड़ी मंदिरों के इर्दगिर्द
जुए और शराब के अड्डे
देश द्रोहियों के मिलन स्थल
मेरी निगाहों में है …
नदी के होते चीर हरण में
नदी के प्रदूषण में
बड़े बेड़े मिलेनियम सेठ
बड़े बड़े जन सेवकों के नाम
मेरी बाहों में हैं ।
कोई कुछ भी लिखें
किसी को कुछ भी दिखे
समय आने पर सब बताऊँगा
अपने लंबे होने का फर्ज़ निभाऊँगा ॥