खग-मृग कुल में बात चली है….
खग-मृगकुल में बात चली है….
भाखा किसकी हाय फली है
सूनी शहर की हर गली है
काँप रही है दुनिया थरथर
बैठा सर पर काल बली है
दिन बीता अफरातफरी में
सहमी-सहमी साँझ ढली है
अच्छे दिन अब क्या आयेंगे
मुरझ चली उम्मीद-कली है
दूर है मंजिल साथ न कोई
राह पथरीली दलदली है
भोग रहा नर फल करनी का
खग-मृगकुल में बात चली है
कानों में रस घोल रही आ
गुंजित हवा में काकली है
क्या-क्या और देखना बाकी
घड़ी कठिन बड़ी बेकली है
मिट रही अब धैर्य की ‘सीमा’
मच रही दिल में खलबली है
– सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद