क्षमा देव तुम धीर वरुण हो……
क्षमा देव तुम धीर वरूण हो, किल्विष का मैं पर्ण गुच्छ हूँ
सुधा देव गंभीर अरूण तुम, धरा गर्भ मैं पला पुष्प हूँ
रूप सरस सौंदर्य देव जब, बरसाते तुम पर अविरल है
धूप अमर हो जाती है तब, जो बन जाती छांँव तरल है
सघन-तरल शुचि शून्य सरल हूँ, चेतन नभ नक्षत्र तुच्छ हूँ
सुधा देव गंभीर अरूण तुम……..
जीवन धारा बन आते जब, लगता मोक्ष वही क्षण मुझको
प्रीत सहारे पहुंचें तट तब, लगता मोक्ष वही क्षण तुझको
आशा की तुम ज्योति किरण मैं, दीप्ति दीप प्रज्ज्वलित पुंछ हूँ।
सुधा देव गंभीर……
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)