क्षतिपूर्ति
क्यूं
जीती हो तुम
गलतफहमी में
क्यूं लगता है तुम्हें
कि न रहने से तुम्हारे
घर बिखर जाएगा
बच्चे अनाथ हो जाएंगें
पति मायूस
सास – ससुर लाचार हो जाएंगें
सुनो सखि!
मत सोचो
कि तुम नहीं रहोगी
तो रसोई से पकवान की खुशबू नहीं आएगी
फीके त्योहार हो जाएंगें
अचार,बड़ी,पापड़
कौन बनाएगा
कपड़ों को धूप कौन दिखाएगा
तह करके कौन जमाएगा
घर की सफाई
कपड़े बर्तन की धुलाई
बच्चों की पढ़ाई
सास-ससुर की दवाई
का क्या होगा
और क्या होगा
पति की थकान का
कभी सोचा है
क्या हुआ
तुम्हारी ऊँची उड़ान का
याद है तुम्हें
पिछले साल
पूर्व छात्र मिलन समारोह में
तुम नहीं आई थी
बच्चों के इम्तिहान थे
अपनी सबसे प्यारी सहेली
के गृह प्रवेश में
नहीं जा सकी तुम
ससुर जी बीमार थे
मौसी के लड़के की शादी,
बचपन से बड़ा दुलार दिया था जिन्होंने
में शामिल नहीं हुई
पति को ऑफिस के काम से
जाना था बाहर
और तुम ढकेल दी गई
घर के अंदर
घर
घर सिर्फ तुम्हारा नहीं है
इसे औरों का भी होने दो
तुम्हारे न रहने से
कुछ नहीं बिगड़ेगा
काम वाली बाई
घर के कामों के लिए
बच्चों के लिए आया
रख ली जाएगी
सास – ससुर के लिए
कोई केयर टेकर आएगी
घबराओ मत
तुम इतनी भी
अनिवार्य नहीं हो
कि तुम्हारा विकल्प ही न हो
हो सकती है तुम्हारी क्षतिपूर्ति
मत बनो त्याग की मूर्ति
स्वयं को मत इतना
आसान होने दो
अपने लिए
एक ज़मीन
एक आसमान होने दो
पूरे करो शौक़
गाने सुनो
या स्वेटर बुनो
बातें करो
या लिखना चुनो
मगर चुनो
चुनाव भी तुम्हारा हो
और
मत भी तुम्हारा हो
ऐसी व्यवस्था रखो
परिवार को देने को
एक सीमित अवस्था रखो
सोचो ऐसे
कि कोई घर
नहीं होता भूत का डेरा
बिन गृहिणी के,
हो जाती है भरपाई इसकी
बहुत आसानी से।