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9 Apr 2022 · 1 min read

क्षण भंगुर

ज्योतिपुंज से वातावरण शुद्ध करते
अन्तस को अपने नित्य दिव्य करते
मन का कलुष निकलता अंदर से
अगम का प्रविष्ट आत्म समन्दर में

देह नहीं है अजेय अमर सृष्टि में
ज्यों हो क्षण भंगुर बूँद वृष्टि में
काया कल्प हो जब रचित सृजन
कोन देह बनी अमर है इस भुवन

अनन्त अविनाशी वही जगत में
जिस पर हो ईश कृपा प्रलय में
क्षणिक है इस जग में आवागमन
क्षण भंगुर है अपने भी सपन

अन्तस में विधमान ज्योतिपुंज
वहीं रचता है हम सबके कुंज
मेरा तेरा है जो मही पर सम्बन्ध
वहीं रखता तेरे मेरे बीच अनुबंध

Language: Hindi
17 Likes · 1 Comment · 425 Views
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