क्रूर
क्रूर(शुभांगी छंद)
क्रूर मनुज ही,घोर दनुज है,दूषित भुज है, मटमैला।
नीच-पतित है,घृणित क्षितिज है,अधो गतिज है,विष थैला।
उसको कुचलो,चीरो मसलो,खूनी जन को,ललकारो।
नहिं सामाजिक,गंदी साजिश,करनेवाले,को मारो।
तोड़ो जबड़ा,अधमाधम का,नरभक्षण जो,करता है।
रहने मत दो,उसको जग में, जो तन भोजन,चरता है।
जीने का हक,उसे नहीं है,नारी जिसकी,भोग्या है।
बलात्कार जो,करता खुश हो,वह फाँसी के,योग्या है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।