क्यों हम पीछे हैं (कविता)
क्यों हम पीछे हैं (कविता)
विकास की गति बहुत तेज,
फिर भी क्यों हम पीछे हैं।
दशकों से दौड़ रहे सब,
फिर आगे क्योंनहीं बढते हैं।
सीमा पर होती हलचल को,
अन्देखी हम करते हैं।
जब शहीद हो जाता सैनिक,
सीमा तोड़ कर लड़ते हैं।
एक के बदले दस मारते,
पीछे जोश दिखाते हैं।
पर पहले क्यों करें प्रतिक्षा,
यह समझ क्यों नहीं पाते हैं।
बैंकों के लेन देन को,
प्रोत्साहन हम देते हैं।
कर्जदार से हाथ मिलाकर,
अच्छी साख बनवाते हैं।
भाग जाता कोई माल्या जैसा,
एक दूजे को दोषी ठहराते हैं।
ध्यान नहीं देते हम पहले,
सब मिल कमीशन खाते हैं।
अतिक्रमण होता रहता,
नजर नहीं उस पर डालें।
पट्टा बिजली की दे सुविधा,
वोटबैंक को सब पालें।
फिर अतिक्रमण को हटवाने,
बुलडोजर चलवाते है।
धन और श्रम की कर उपेक्षा,
वेवजह समय गंवाते हैं।
शिक्षा संस्थान बड़े बड़े,
पर योग्यता अधूरी है।
शिक्षक विहीन शिक्षा से,
कैसे उच्च स्तर पाते है।
बिन पढ़ें और बिन परीक्षा,
पास सभी हो जाते है।
बेरोजगार बना युवा को,
समोसे हम बिकवाते है।
योग्यता की परख नहीं,
आरक्षण बढ़ाते जाते है।
अयोग्यता का लाभ उठा,
मनमाफिक काम कराते है।
आवाज उठें यदि समाज से,
दोषी व्यवस्था को बतलाते हैं।
कृषि क्षेत्र में मांगें उठती,
बिजली, पानी,खाद की।
होती है बर्वाद फसल,
कोई न सुने किसान की।
फिर राहत का पैकिज लाते,
कर्ज माफ हम करते हैं।
हर क्षेत्र का हाल यही,
गड्डे करते और भरते हैं।
आगे बढ़ने के बदले,
उल्टे पांव पीछे को धरते।
कैसे उत्थान करेंगे हम,
खुद ही हम पिछलते है।–
(राजेश कौरव”सुमित्र”