क्यों करें हम
एक ग़ज़ल-
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कोई भी ख़ाब देखा क्यों करें हम
खुद अपनी नींद रुस्वा क्यों करें हम
नहीं जब गुलशन-ए-दिल में कोई फूल
तो इन काटों से तौबा क्यों करें हम
विसाले-यार जब मुमकिन नहीं है
तो फुरक़त में गुज़ारा क्यों करें हम
मुअय्यन ही नहीं कीमत जो कोई
तो खुद को इतना सस्ता क्यों करें हम
जहीनों जब यहाँ फ़ानी है सब कुछ
यहां फिर उम्र ज़ाया क्यों करें हम
ए जाने-जान तुझको चांद कहके
तेरा मैयार छोटा क्यों करें हम
खमोशी से उठाएं तेरा हर ग़म
भला ए ज़ीस्त ऐसा क्यों करें हम
जिन्हें है ही नहीं कुछ क़द्र-ए-उल्फ़त
उन्हें उल्फ़त नवाज़ा क्यों करें हम
जहां होता हो अक्सर इश्क़ रुस्वा
उसी कूचे से गुज़रा क्यों करें हम
कोई वादा वफ़ा का क्यों करो तुम
कोई दावा वफ़ा का क्यों करें हम
निभाने की नही जब ताब हममें
सिवा कोई भि वादा क्यों करें हम
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सिवा संदीप गढ़वाल