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7 Jul 2022 · 1 min read

क्यों करूँ नफरत मैं इस अंधेरी रात से।

क्यों करूँ नफरत मैं इस अंधेरी रात से,
जिसने मिलवा दिया मुझे अपने आप से।
गर्दिशों में भी इसने चमकना सिखाया,
और आंसुओं के साथ भी तो अपना बनाया।
हाँ, उजाले शख्शियत तो साथ लाते हैं,
पर सूकून की नींद भी तो ये चुराते हैं।
ये ऐसी खामोशियाँ लिए चली आती हैं,
जो हर तथ्य को साफ समझा जाती हैं।
कारवां लिए आती हैं ये भूली बिसरी यादों के,
और महफिलें सजाती हैं, दर्द और जज्बातों के।
बारिशों के साथ ये और भी मुस्कुराती हैं,
और बूंदों का रास्ता मेरी आंखों से बनातीं हैं।
कभी टूटे सपनों के सिलवटों में छटपटाती हैं,
तो कभी नये ख्वाब पलकों पे रख कर जाती हैं।
ये दिन भी तो थक कर उसकी चादर तले सो जाते हैं,
और हर शाम उसके आने को आंखें बिछाते हैं।
दीपक की लौ को भी तो इसने हीं अस्तित्व दिया है,
वरना दिन में चिराग जला कर किसने उजाला किया है।

4 Likes · 2 Comments · 634 Views
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