क्यूँ एक भी ग़लती रही
ये सोच ही चलती रही
क्यूँ एक भी ग़लती रही
रौशन महल होता रहा
बस्ती मगर जलती रही
वो तंज ही करता रहा
ये बात पर खलती रही
सुनते हुये वो सो गया
गर्दन मगर हिलती रही
फिर जीत पाया इस दफ़अ
मां की दुआ फलती रही
आया नहीं वो आज फिर
ये शाम भी ढलती रही
मालूम होता किस तरह
झूठी वफ़ा छलती रही
पाने की तुझको आरज़ू
दिल को मेरे दलती रही
आनन्द की चाहत मगर
सारी उमर पलती रही
डॉ आनन्द किशोर