क्या मेरी पहचान है।
कौन हूं कहां से आया ।
क्या मेरी पहचान है ।
इस धरा पर किसलिए ।
हुआ मेरा अवतार है ।
द्वेष, दंभ, पाखण्ड फैला बेशुमार है ।
विस्तृत रूप से फैला यहाँ भ्रष्टाचार है ।
लिप्त भोग वासना मे सारा ही संसार है ।
जैसी सोच है यहाँ वैसा ही परिणाम है ।
जद्दोजहद अमीर बनने के लिए ।
आदमी पर भूत सवार है ।
खरीद लेंगे वसुंधरा को जैसे ये ।
लोभियो की भरमार है ।
फैली है यहाँ पर बुराइयो की महांमारियॉ
लोग तो बदल गए आप भी बदल जाओ ।
नही तो बढ जाएगी आप के सामने दुशवारियॉ।
अमन, चैन, शांति, धर्मपरायण जिसका नारा था ।
धरा पर फैलाने का लक्ष्य हमारा भाईचारा था ।
होता रहता यहां रोज ही मार -मारा था ।
जिंदगी तो उन लोगो की हो गई बर्बाद है ।
जिसने है समझ लिया मोह माया को घर द्वार है ।
इस धरा पर इसलिए आए एक ही उद्देश्य है ।
कर अपने मन को वश मे भगवतपरायण धर्म क्षेत्र हो ।
मानवता के लिए खुले जिसके नेत्र हो ।
कर्म कर प्यार का भवबंधन से मुक्त हो ।
गुणानुनाद से गुजेगी तेरी जयध्वनिया।
आदमी अमर नही, अमर उसके कर्म है ।
कर्म ही तो इस धरा पर आपकी पहचान है ।
यथा आवरण तथा आचरण संगत की मिसाल है ।
आपका पहला कदम ही ।
मंजिलो की डोर है ।
रोशनी है वही पर ।
जहां अग्नि छोर है ।
भाग्य तो सभी का ।
कर्म के उस ओर है ।
जैसी भी स्थिति जिस किसी की ।
सोच का परिणाम है ।
बदलने है हालात गर तो ।
पहले बदलो अपने सोच को ।
परिस्थितिया है बदलनी तो ।
मन:स्थितियो पर जोर दो ।
दुनिया है वही खड़ी ।
बदली आपकी सोच है ।
सोच मे ढल जाएगी सारी उम्र आगे मृत्युलोक है ।
रोग और शोक है ।
सोचते रह जाओगे आप ।
कर जाएंगे दूसरे ।
आप यूं ही अगर -मगर करते रहे तो ।
बढ जाएंगे दूसरे ।
कल, काल रूप है ।
जो करना है आपको ।
अभी करे तत्काल मे ।
समय प्रशस्त, सख्त जिसका यहाँ मस्त उसकी जिंदगी ।
वर्तमान की आधारशिला जितनी सख्त है ।
भविष्य बनेगा उतना ही आलीशान महल मस्त है ।
वर्तमान से ही भूत और भविष्य है ।
बाकी सब झूठे यहाँ स्वप्न -सा दृश्य है ।
रखो ध्यान मे मेरे इस चिरस्मरणीय बात को ।
रहोगे तुम भी चिरस्मरणीय अपने कर्मो के बलबूते पर ।