क्या चाहता है कवि ?
क्या चाहता है कवि ?
कि बहुत कुछ चाहते है कवि,
जब भी मंच पर खड़े हो
कविता पाठ करने को ,
मिले उसे महफिल ऐसी
हो जिस में श्रोता खचाखच भरी ,
तालियों की गड़गड़ाहट हो
चहूँ ओर “वाह! वाह!” की गूंजे,
अनगिनत शाब्बासियाँ मिले सबसे ,
मशहूर हो जाए वह;
सुने उनको सब बड़े ध्यान से
सुकून मिले सबको जैसे;
उनकी रचना सर्वोत्तम हो,
न लड़ाई झगड़े की
न ऐशो-आराम की
चाहत उनको मिठी बोली की ,
धन नही सम्मान के भूखे
सम्मानित हर क्षण हर जगह हो,
यही ख्वाहिश होती है कवि की
दूजा न कोई चाहत उसकी ,
यही उत्तर देगा हरेक कवि
पूछो प्रश्न कभी तुम यदि ,
क्या चाहता है कवि?
क्या चाहता है कवि?