कौन जाने आखिरी दिन ,चुप भरे हों या मुखर【हिंदी गजल/गीतिका 】
कौन जाने आखिरी दिन ,चुप भरे हों या मुखर【हिंदी गजल/गीतिका 】
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कौन जाने आखिरी दिन ,चुप भरे हों या मुखर
कौन जाने हों कहाँ पर, अस्पतालों में या घर (1)
होश में हों या नहीं, कुछ याद या भूले हुए
कौन जाने कुछ पता हो, या नहीं अपनी डगर (2)
बन न जाएँ खुद तमाशा, हम कहीं बाजार में
लोग आएँ देखने, यह सोचकर लगता है डर (3)
जिंदगी जब जी नहीं पाएँ ,नहीं ढोना पड़े
याचना इतनी है मालिक, याद रह जाए अगर (4)
आदमी की हैसियत का, आकलन तो कीजिए
तन से गई जब सॉंस तो, फिर राख मटकी भर (5)
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तरप्रदेश
मोबाइल 999 761 54 51