कोरोना संग चुनाव
बज गयी है डुगडुगी,
चुनाव छाया चहुं ओर ।
भाग गया कोरोना,
बिन चुनाव की ओर ।
नाइट में कर्फ्यू ,
दिन में बैंड बाजा ।
बंद हुए है विद्यालय ,
खुला है दारू गांजा ।
महामारी की फैली दहशत गर्दी है,
सरकार की ये कैसी हमदर्दी है ।
क्या जान से कीमती चुनाव है,
इस महामारी के बीच ।
न जाने कितनों के अपने,
संग छोड़ गये अधबीच ।
अंधेर मचा है सरकार का,
अपने मतलब से,
फायदा उठाते कोरोना का ।
कभी आंकडे़ उठाकर देखो,
चुनाव के बाद कोरोना का ।
सरकार के भरोसे,
अब न हमको रहना है ।
केवल मास्क रोक सके न इसको,
भीड़ पर भी नियंत्रण रखना है ।
महामारी को रोकने की खातिर,
संकल्प हमें आज लेना है ।
टीका सबको लगवाना है,
कोरोना को दूर भगाना है ।
डां. अखिलेश बघेल “अखिल”
दतिया (म.प्र.)