कोरोना का सन्नाटा
सब घर क्यो बना कैदखाना है ।
इंसान सच्चाई से क्यो बेगाना है ।
यही आज हमने सच्चाई जाना है ।
सङक है खाली, सन्नाटा है क्यों पसरा ।
लगता है यहाँ भी वायरस कोरोना है ।
गुल्ली -डंडा खेल रहे है सभी ।
राजमार्ग बना आज स्टेडियम का अन्ना है ।
क्रिकेट भी है खेल रहे लोग वहाँ ।
गेंद पकङने को चौकन्ना है ।
मां -बाप कहते घर मे रह पढो लेकिन
खुलता कब किताबो का पन्ना है ।
आज ये बंद क्यो मैखाना है ।
सुने थे कि यही कोरोना का ठिकाना है ।
पर पीता है कौन चुपचाप आज जमाना है ।
रेडियो पर कान गङाए, बूढा लगा सुनने मे ।
कि खबर है क्या कुछ तो नही भयावना है ।
खांस रहे भले ही नही वो पक जाना है ।
उससे भी तो तगङा ये रेडियो का खरखराना है ।
सुरक्षा बरत रहे सभी पुरी कर नियम सभी ।
घूंट -घूँट कर क्या जीना ।
इससे अच्छा ये मर जाना है ।
चांद -तारे को देख मै छत पर सोता हूँ ।
कभी -कभी रातो मे जगकर ।
टहलने जाता हूँ ।
बङा सोच समझकर ।
चूगता वो दाना हूं ।
भले ही मै लङखङा जाऊं ।
पर सदैव सम्भल जाना है ।
लगता है यहाँ भी वायरस कोरोना है ।
तभी तो हमको लग रहा यहाँ सन्नाटा है ।
Rj Anand Prajapati