कोरा कागज और मेरे अहसास…..
कोरा कागज और मेरे अहसास,
पता नहीं कितने दूर और कितने हैं पास!
सोचा उतार ही दूँ आज मैं भी अपने जज्बात,
बात में बात सोचती कि निकल गई रात!
कितने फ़ाड़े पन्ने लिखे जिन पर अन सुलझे सवाल,
दुःखी पन्ना भी मेरे शब्दों को रहा है टाल!!……..
जाने क्यों अंदर भाव का उमड़ रहा सागर आज??…..
डर है शब्दों की लहरें खोल ना दे,
अनसुने अहसास के राज!!…
लहरें भी टकरा रही किनारें से समेटने-
ख्वाबों की सिपियाँ अपार!
मगर डरती हूँ सुनहरे ख़्वाबों के पीछे
छुपे रहते है अंधकार!!….
कहीं लफ्ज़ में छुपे भेद गर पहुँच गये पार,
फिर शब्द पर किसका रहेगा अधिकार??….
और मन का ये परिंदा बोल रहा
मत रूक अभी भर और उड़ान!
खोल अभिव्यक्ति के पंख,
अपने शब्द मंजरी की तू बागबान!!
लिख ना कुछ ऐसे अब तक जो-
नहीं लिखे अल्फ़ाज़!!… वर्ना,
कागज़ तुझे और शब्द कागज़ को-
तंग करने से
नहीं आयेंगे बाज़!!
बस लिख वो…..
पन्नों के साथ आ जाये,
जो दिलों को भी रास!!…
ओह!.. न जाने तब कैसे दिखेंगे स्याही से भीगे??
कोरे कागज़ पर मेरे अहसास!!
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)