कोमल-कोमल पुष्प खिले हैं
कोमल-कोमल पुष्प खिले हैं,
ख्वाबों के अनोखे उपवन में
सुन्दर-सुन्दर स्वप्न सँजोए,
बसे हो जैसे-तुम मेरे मन में।
पवन वेग सी गतिमान है,
साँसों की ग्रीष्म तरंगें
पास तेरे हम आना चाहे,
शशि सी छिप गए हो नभ में,
मधुर-मधुर हम बात करें कुछ
बैठकर मनोरम उपवन में।
रात-रातभर जागकर हमने
चन्द्र के सौंदर्य में तुमको ढूढ़ा
टुकुर-टुकुर सारी रात निहारें,
पर झलक न तेरा मिला
कहो! कहाँ तुम छिप गए हो
करके मेरे मन को विह्वल?
तुम हो प्रेम की एक परिभाषा,
मेरे मन की तुम मात्र जिज्ञासा
प्रेम-ग्रन्थ की तुम हो भाषा,
मेरे उम्मीदों की एक अभिलाषा
पाने को तुमको विचरण करते,
ख्वाबों के नील-गगन में।
– सुनील कुमार