कोई मुझको भी कविता सिखा दे …….
कोई मुझको भी कविता सिखा दे …….
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
अपना भी मनवा ऐसा चाहे
एक प्रसिद्ध कवी मै बन जाऊ
हर तरफ हो मेरे नाम के चर्चे
बड़ी महफिलो में बुलाया जाऊं
कोई ऐसा हमको भी मन्त्र बता दे ।।
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
जोड़ तोड़कर कविता रचूँ मै
साहित्य से निरा अनजान हूँ
मात्रा भार के भेद न जानू मै
भाषा विज्ञान से तंग-हाल हूँ
कोई सदभाषा का ज्ञान करा दे ।।
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
कोई शेरो – शायरी लिखे
लिखे कोई ग़ज़ल कविता
देखकर दुनिया की रचना
मेरे मन जले जैसे पलीता
कोई इस पलीते को भी आग दिखा दे ।।
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
हिंदी में लगे जाने कितनी बिंदिया
उर्दू के समझ आते अल्फाज नही
अंग्रेजी भी लिखता हूँ फ़ारसी में
आदत से आता फिर भी बाज नही
कोई इस आदत को मेरा फन बना दे ।।
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
सीख रहा हूँ ज्ञानियों से
मे भी कुछ ज्ञान ध्यान की बाते
आकर उनके सानिध्य मे
नित जुड़ रहे है नये रिश्ते नाते
कोई इन नातो को निभाना सिखा दे ।।
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
कबीर, सूर , तुलसी, रहीम
जैसे दोहे लिखने सीखा दे
सुमित्रा, महादेवी, निराला
की कविता रचना सिखा दे
कोई मुझमे प्रेमचंद से गुण जगा दे !!
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
रस, छंद, अलंकार क्या है
इनका भी कुछ भान करा दे
ह्रदय भावो का करू चित्रण
सजीवता का वो भाव जगा दे
कोई ऐसा रचनतामकता का ज्ञान करा दे !!
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
अल्लहड़ हूँ मै, बड़ा अनाडी हूँ
फिर भी लोग कहे के खिलाड़ी हूँ
टूटेफूटे भाव समेटने की आदत
सच मानो मै न कोई खिलाड़ी हूँ
कोई इस भ्रम जाल से मुक्ति दिला दे ।।
मै भी बन जाऊं एक कवी अगर कोई मुझको भी कविता सिखा दे ।
साहित्य विधा से हूँ अनजान,कोई साहित्य का मुझे ज्ञान करा दे ।।
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रचनाकार :: ——- डी. के. निवातियाँ ——– ::